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Showing posts from October, 2022

डॉ. मोहम्मद आजम अंसारी ने विश्व शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में आकर सुल्तानपुर का नाम किया रोशन

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इम्तियाज़ खान  सुल्तानपुर--डॉ. मोहम्मद आजम अंसारी पिछले 8 वर्षों से दम्मम विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। डॉ आज़म को लगातार दूसरे वर्ष (2021 और 2022) विश्व शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में सूचीबद्ध किया गया है (जो प्रकाशन रिकॉर्ड और उद्धरणों के आधार पर सबसे प्रभावशाली वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है)। यह डेटाबेस स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के वैज्ञानिकों ने एल्सेवियर के सहयोग से स्कोपस डेटा का उपयोग करके तैयार किया है। डॉ आजम एक बहुत ही छोटे से गांव खानोहा-पारा बाजार से आते हैं। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की और मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनका शोध दवा प्रतिरोधी बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया और कवक के कारण होने वाले संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिए मेडिकल मिक्रोबियोलॉजी और नैनोमेडिसिन पर केंद्रित है। उन्होंने न सिर्फ अपने जिले सुल्तानपुर का नाम रोशन किया है बल्कि अपने गांव खनोहा पारा बाजार और अपने टीचरों का भी नाम रोशन किया है इस पूरी यात्रा में मेरा साथ देने के

20 साल तक चली ख़तरनाक चंदन तस्कर वीरप्पन की तलाश,20 मिनट में ख़त्म

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इम्तियाज खान वीरप्पन के मशहूर होने से पहले तमिलनाडु में एक जंगल पैट्रोल पुलिस हुआ करती थी, जिसके प्रमुख होते थे लहीम शहीम गोपालकृष्णन. उनकी बांहों के डोले इतने मज़बूत होते थे कि उनके साथी उन्हें रैम्बो कह कर पुकारते थे. रैम्बो गोपालकृष्णन की ख़ास बात ये थी कि वो वीरप्पन की ही वन्नियार जाति से आते थे. 9 अप्रैल, 1993 की सुबह कोलाथपुर गाँव में एक बड़ा बैनर पाया गया जिसमें रैम्बो के लिए वीरप्पन की तरफ़ से भद्दी भद्दी गालियाँ लिखी हुई थीं. उसमें उनको ये चुनौती भी दी गई थी कि अगर दम है तो वो आकर वीरप्पन को पकड़ें. रैम्बो ने तय किया कि वो उसी समय वीरप्पन को पकड़ने निकलेंगे. जैसे ही वो पलार पुल पर पहुंचे, उनकी जीप ख़राब हो गई. उन्होंने उसे छोड़ा और पुल पर तैनात पुलिस से दो बसें ले लीं. पहली बस में रैम्बो 15 मुख़बिरों, 4 पुलिसवालों और 2 वन गार्ड के साथ सवार हुए. *वीरप्पन का आतंक* पीछे आ रही दूसरी बस में अपने छह साथियों के साथ तमिलनाडु पुलिस के इंस्पेक्टर अशोक कुमार चल रहे थे. वीरप्पन के गैंग ने तेज़ी से आती बसों की आवाज़ सुनी. वो परेशान हुए क्योंकि उन्हें लग रहा था कि रैम्बो जीप पर

इल्म सीखने व सिखाने वाले से खुश होता है अल्लाह---मुफ़्ती अब्दुर्रहमान खान

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रिपोर्ट-इम्तियाज खान सुल्तानपुर---तहसील बल्दीराय सूबे के आलामऊ में मौजूद मदरसा जामिया नूरिया रज़बिया में क़ुरआन मुक़म्मल किए छात्रों की दस्तारबंदी की गई,हिफ़्ज़ कुरआन की फ़ेहरिस्त में तालिब इल्म मो० वज़ीर खान श्रावस्ती, मो० शमीम व मो० सैफ़ रज़ा बलरामपुर, मो०शमशाद नन्दौली सुल्तानपुर को हाफ़िजे क़ुरआन  की सनद से नवाजा गया। मदरसा के नाज़िम मुफ़्ती अब्दुर्रहमान ने तकरीर करते हुए कहा कि इल्म वह दौलत है जो बांटने से और ज्यादा बढ़ती है। यह हमारे लिए अल्लाह का इनाम है। दीनी तालीम सीखने और सिखाने वाले से अल्लाह और उसके रसूल राजी होते है। जो लोग मदरसों और मस्जिदों को आबाद करते हैं,अल्लाह तआला उनके घरों को आबाद करता है। उन्होने लोगों से कुरआन और हदीस के रास्ते पर चलकर अपनी जदगी गुजारने की ताकीद करने के साथ ही अपने बच्चों को दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम दिलाने पर जोर दिया। बिहार से तशरीफ लाए मुफ़्ती फिदाऊल मुस्तफ़ा ने भी कुरआन व हदीस की रोशनी में सभी से शरीअत पर अमल करने की अपील की। कारी हसनैन रज़ा क़ादरी ने अपनी तकरीर में कहा कि इल्म की बुनियाद पर ही आख़िरत और दुनिया में ही कामयाबी मिल

2 अक्तूबर जन्मदिन:: गांधी ने जज से कहा, जानता हूं कि मैं आग से खेल रहा पर मैं दया नही चाहता

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इम्तियाज खान राज खन्ना                  साबरमती आश्रम में गाँधीजी की शाम की प्रार्थना अभी समाप्त ही हुई थी। तभी पुलिस आयी। गाँधीजी ने स्वयं को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत कर दिया। उन पर अख़बार 'यंग इण्डिया' के 29 सितम्बर 1921, 15 दिसम्बर 1921 और 23 फरवरी 1922 के अंकों में ऐसे तीन लेख लिखने का आरोप था, जिनका मकसद ब्रिटिश भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध असंतोष, उत्तेजना और विद्रोह के लिए लोगों को भड़काना था। इन लेखों के शीर्षक थे ," वफ़ादारी के साथ छेड़छाड़" , " पहेली और इसके समाधान " तथा " प्रेतों को हिलाना "। गांधी जी के साथ ही अख़बार के प्रकाशक शंकर भाई धेला भाई बैंकर भी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए के तहत मुल्जिम बनाये गए।         10 मार्च को गांधी जी गिरफ्तार हुए और  18 मार्च 1922 को अहमदाबाद के डिस्ट्रिक्ट सेशन जज सी.एन. ब्रुम्सफील्ड की अदालत में  मुकदमा शुरु हुआ। बम्बई के एडवोकेट जनरल जे.टी.स्ट्रांगमैन ने अभियोजन पक्ष की अगुवाई की।स्ट्रांगमैन ने कहा कि जिन तीन लेखों के आधार पर यह मुकदमा चलाया जा रहा है, उन पर अलग-अलग विच

2 अक्टूबर जन्मदिन::शास्त्री जी ने कहा , वे कश्मीर पहुंचें इससे पहले लाहौर पहुंचना चाहता हूं

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इम्तियाज़ खान राज खन्ना  प्रधानमंत्री का पद संभालने के सिर्फ सात महीने के भीतर लाल बहादुर शास्त्री के सामने घरेलू मोर्चे के साथ ही सीमाओं की रक्षा की दोहरी चुनौती थी। कच्छ के रण में पाकिस्तान ने मोर्चा खोल दिया। फरवरी 1965 में गुजरात पुलिस के गश्ती दस्ते ने सीमा के 2.4 कि.मी. भीतर  32 किलो मीटर लम्बी एक पगडंडी देखी। पाकिस्तान ने इसे भारी वाहनों के लिए बनाया था। उसका एयरपोर्ट भी पास था। सामरिक दृष्टि से वह बेहतर स्थिति में था। अमेरिका उसे मदद कर रहा था। सोवियत संघ भी पाकिस्तान से संबंध सुधारने की राह पर था। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने उन्हें तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए राजी कर लिया। यह भारी रियायत थी। पर  युद्ध टालने की शर्त थी। बाद में 18 फरवरी 1968 के फैसले में कच्छ के रण पर भारत के पूर्ण अधिकार को नही माना गया। कुल 3500 वर्ग मील के क्षेत्र में 300 वर्ग मील इलाका पाकिस्तान के हिस्से में गया।                पर शांति की यह कोशिश निरर्थक थी। कश्मीर के मोर्चे पर पाकिस्तानी गोलीबारी बढ़ती गई। बड़े पैमाने पर पाक सेना से प्रशिक्षित घुसपैठियों के जरिये कश्मीर में बगावत का स्वांग रचा ज